हड़प्पा सभ्यता मिस्त्र तथा मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से काफी मिलती-जुलती है। मैक्डोनाल्ड के मतानुसार हड़प्पा सभ्यता सुमेरियन सभ्यता की बेटी है। हाल का कहना है कि सुमेरियन सभ्यता हड़प्पा सभ्यता से ही निकली है। कुछ विद्वानों का मत है कि सिन्धु सभ्यता मिस्त्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से श्रेष्ठ थी। वास्तव में हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों के उर्वर मैदान में भारत की कांस्य काल की प्राचीन सभ्यता का उदय हुआ था, जिसको सामान्यतः ‘सिन्धु सभ्यता’ (प्दकने अंससमल बपअपसप्रंजपवद) कहा जाता है। हड़प्पा नामक पुरास्थल से सर्वप्रथम ज्ञात होने के कारण इसको हड़प्पा सभ्यता या हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।
‘‘सिन्धु सभ्यता वास्तव में भारतीय ही है। यह भवन निर्माण और उद्योग के साथ-साथ वेशभूषा तथा धर्म में आधुनिक भारतीय संस्कृति का आधार है। मोहनजोदाड़ो में ऐसी विशेषताएँ गोचर होती हैं जो ऐतिहासिक भारत में सदैव विद्यमान रही हैं।’’
सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज
सिन्धु घाटी की सभ्यता के अवशेष सिन्धु एवं उसकी सहायक नदी-घाटियों में मिले हैं, इसलिए यह सभ्यता सिन्धु सभ्यता के नाम से प्रख्यात हुई। सिन्धु सभ्यता का परिज्ञान पुराविदों की एक महत्वपूर्ण देने है। पुराविदों के अनवरत परिश्रम एवं अनुसन्धान ने ही इस सभ्यता को प्रकाशमान किया है।
1921 ई0 तक यह धारणा थी कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता आर्यों की वैदिक सभ्यता है। किन्तु खनन में प्राप्त अवशेषों से यह धारणा निर्मूल हो गई। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक जाॅन मार्शल के निर्देश पर सन् 1921 में दयाराम साहनी ने पंजाब प्रांत में स्थित माण्टगोमरी जिले के हड़प्पा नामक स्थल पर उत्खनन कराया, जिसमें एक अत्यन्त प्राचीन सभ्यता के पुरावशेष प्राप्त हुए।
सन् 1922 ई0 में राखालदास बनर्जी ने सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्थित मोहनजोदाड़ो के टीलों का पता लगाया और उत्खनन के द्वारा एक भव्य नगर के भग्नावशेष प्राप्त किये।
हड़प्पा के टीलों पर जाॅन मार्शल के नेतृत्व में माधोस्वरूप वत्स ने सन् 1923-24 के मध्य उत्खनन कराया।
1927-31 के मध्य एन0 जी0 मजूमदार और 1935-36 ई0 में जे0 एच0 मैके महोदय ने सैंधव सभ्यता की खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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